“सिंदूर: लहू से लिखी गई वीरता की कहानी”

 
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इस कविता के द्वारा, कवि अपनी सोच को व्यक्त करते हुए ये कहना चाहता है की

जब देश के निर्दोष लोगों पर अत्याचार होता है, तो सिर्फ आंसू बहाना काफी नहीं होता; उसका जवाब देना भी जरूरी होता है।ऑपरेशन सिन्दूरसिर्फ एक मिलिट्री का मिशन नहीं, बल्की एक ऐसी मिसाल है उस जज्बे की - जहां सिन्दूर सिर्फ श्रृंगार नहीं, बलिदान और न्याय का प्रतीक बन गया है, वह एक ऐसा संकल्प था, जो लाल रंग के लहू से लिखा गया, वह एक ऐसी ज्वाला थी जो दुश्मन को ये सिखा गई की अब हर आंसू का हिसाब होगा, हर बलिदान का जवाब होगा, और हर जुल्म का बदला लिया जाएगा। ये कविता उस अग्नि-परीक्षा की गवाही देती है, जहां लाल रंग इश्क़/मोहब्बत या दर्द का नहीं, बल्की बलिदान की शक्ति का सबक बन जाता है।
इस कविता के माध्यम से कवि ये भी दिखाना चाहता है कि देशभक्ति सिर्फ नारेबाज़ी नहीं, वो जुनून है जो वीर जवानों के खून से लिखी जाती है - और उसकी लाल रेखा का नाम है: “सिंदूर


जब सुर्खियां छाई थी सरहद के उस पार,

ऑपरेशन सिंदूर ने रचा इतिहास अपार।
कश्मीर की वादियों में जब घुसे थे आतंकी भेड़िए,
वीरों ने किया उनका सफाया गर्जन के साथ।

अप्रैल की 22 तारीख, पहलगाम में खून की बारिश,

26 मासूम बने आतंक का शिकार,
TRF के हाथों , Lashkar-e-Taiba के साथ।
फिर भारत ने लिया संकल्प, अब सहेंगे यह अत्याचार।

पहलगाम की घाटी में बहा निर्दोष का रक्त,

बिखरे शव, टूटी माला, टूटा हर विश्वास।
माँ की गोद सूनी, पिता की आँखों में आस,
हर दिल में गूंजे अब एक ही आवाज़।

वो लाल लकीरएक वफ़ा का निशाँ,

मिट्टी की शान, वीरों की ज़ुबाँ।
पहलगाम के ज़ख्म से उठी एक आग,
हर दिल में बसी, एक रौशन दास्ताँ।

रात के पहलू में छुपी एक चीख थी,

जिस में ज़ुबान नहीं थी, सिर्फ एक तस्वीर थी।
सिन्दूर थाना शादी का, ना सुहागन का नूर,
एक लाल लकीर थी... बस ज़ख्म का दस्तूर।

भारत की धरा पर, भगवा आसमान तले,

ऑपरेशन सिंदूर चुपचाप उठ खड़ा हुआ अकेले।
एक मिशन, जो छाया और ज्वाला में छुपा हुआ था,
माँ की दुआएं और शहीदों के नाम साथ लिए चला था।

सिंदूर की सौगंध है, लहू की पुकार,

शहीदों की चिताओं से उठा हर अंगार।
जहाँ हर बिंदी में बसती है बस बलिदान की ही बात,
वहाँ चुप्पी नहीं, अब है प्रतिकार की रात।

अब बस! कहकर उठे वीर जवान,

रात के सन्नाटे में गूँजा प्रतिशोध का गान।
राफेलो की गर्जना, मिसाइलों की तान,
दुश्मन पर बरसी, आग की भयानक शान।

7 मई की सुबह, ऑपरेशन सिन्दूर का आग़ाज़,

पाक- PoK में नौ छुपे ठिकाने, बने क़हर का अंदाज़।
राफेल जेट की उड़ान और स्कैल्प मिसाइल का सटीक प्रमाण,
70 से अधिक आतंकी बने न्याय का निशान।

बहावलपुर से मुज़फ्फराबाद तक,

लश्कर और जैश के ठिकाने राख।
23 मिनट की उस तड़पती सुबह में,
न्याय ने पहना प्रतिशोध का राग।

पाक ने कहाये तो जंग का एलान है,

भारत बोलानहीं, ये तो इंसाफ़ की जुबान है।
मासूमों के लहू ने लिखी एक दर्द भरी कहानी,
पर आतंक के विरुद्ध ये कुर्बानी थी जरूरी।

महज़ युद्ध नहीं, यह एक पैगाम था,

कि भारत अब खामोश नहीं रहेगा।
कि हर आँसू का अब हिसाब होगा,
और हर बलिदान का अब जवाब होगा।

सिंदूर की सौगंध एक प्रतीक है,

नारी के स्नेह का, वीरों के शौर्य का।
अब ये रंग सजावट और शृंगार का है,
बल्कि प्रतिशोध की दहकती अंगार का है।

सिन्दूर की लाल लकीर, अब भी है गहरी,

वीरों की कहानी, हर दिल में है सहमी।
पर ये याद रहे, जब भी वतन पर आये बात,
भारत दिखायेगा न्याय का सच्चा रासता, बिना किसी घात।

एक मिशन - जिसे नाम मिला ऑपरेशन सिन्दूर,

हर हिंदुस्तानी को है इस जज़्बे पर गुरूर।
यह सिर्फ़ एक मुहिम नहीं, इक कसम थी,
ज़ख़्म भी भरने थे, और सरहदें भी संभालनी थी।

झंडा फहरा के दहाड़ा हिंदुस्तान,

हर कुर्बानी है तेरा अभिमान!
दुश्मन की निगाह में जो थी खौफ की लकीर,
वो थी हमारे वीर-जवानों की शान की तस्वीर।

जब भी तिरंगा लहराएगा,

हर दिलवंदे मातरम्गुनगुनाएगा।
सिंदूर की सौगंध याद दिलाएगी,
कि भारत कभी झुका था, झुकेगायह बतलाएगी।

ना पूछो किस मोड़ पे लाई है तकदीर,

जब लहू में हो देश, तो डर कैसा, कैसी तक़रीर।
सिन्दूर के उस एक तिलक में बसी है पूरी क़ौम की शान,
सलाम उन शहीद वीरों कोजिनसे है हमारा हिंदुस्तान।

जिस लहू से लिखी गई दास्ताँ, वो इबादत की हे पैग़ाम,
वो सिन्दूर अब इश्क़ नहीं, इंक़लाब की हे पहचान।
हर वीर हुआ शहादत के लिए कुर्बान,
सिन्दूर नहीं, वो इस मिट्टी का हे सच्चा ईमान।

 

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