“ख़ामोशी-ए-दीयों की रौशनी”

 ख़ामोशी--दीयों की रौशनी

( एक आत्मिक ग़ज़लउजाले के भीतर का अंधेरा )


इस कविता के द्वारा कवी अपनी सोच को व्यक्त करते हुए ये कहना चाहता है की, ज़िंदगी की असली रौशनी सिर्फ़ बाहर की जगमगाहट में नहीं, बल्कि हमारे भीतर की ख़ामोशी और भावनाओं में छिपी होती है। त्योहार और खुशियाँ सिर्फ़ बहाना हैं; अगर दिल में अँधेरा हो तो कोई रोशनी महसूस नहीं होती। कवी कहना चाहता है की असली उजाला वही है जो भीतर से जलेजो हमें खुद से रोशन करे।


हर तरफ़ रौशनी है मगर दिल में अँधेरा है,

ये दीवाली भी अब बस इक तसव्वुर का सवेरा है।


मुस्कुराते हैं लोग, पर थक चुके हैं भीतर से,

हर खुशी के नीचे बिखरा कोई लम्हा अधूरा है।


वक़्त ने सिखाया उजाला भी झूठा है,

हर दीया अपने धुएँ में ही घिरा है।


रौशन घरों में साये हैं, चेहरों पे नक़ाब,

हर मुस्कान के पीछे कोई ग़म गहरा है।


हँसी की गूंज थी इन दिवारों में कभी,

अब तो हर साज़ में बस ख़ामोशियों का ठिकाना है।


यादों के दिए जलाए हैं, बुझते नहीं मगर,

हर लौ के पीछे इक टूटा ख्वाब सज़ा है।


वक़्त की चौखट पे बैठी है थकी हुई उम्मीद,

हर उम्मीद के आगे अब सब्र का आशियाना है।


मेहफ़िलें सजती हैं, मुस्कुराहटें बिखरी हैं चारों ओर,

पर इस दिल में तो अब भी सन्नाटों का डेरा है।


जीने की रस्म निभाता है हर इंसान यहाँ,

पर हर साँस किसी अधूरे सफ़र का किस्सा है।


जो चमकते हैं बाहर, वो बुझ चुके हैं भीतर,

रूह का हर कोना अब ख़ामोश दरिया है।


कभी वक़्त मुस्कुराया था हमारी हथेलियों में,

अब वही वक़्तराख बन, रूह पे फैला है।


दीयों से जगमग है दुनिया की गलियाँ सभी,

पर रूह के अँधेरों में कौन सा भटकता किनारा है?


वक़्त ने जो छीना, लौटकर आता नहीं कभी,

बस यादों की धुंध और आँखों का बहता दरिया है।


रिश्तों के दरम्यान अब आवाज़ें भी खो गईं,

दीवाली की रात भी अब बस रसमों का पहरा है।


बीते हुए कल की यादें तो बहुत ख़ूबसूरत हैं,

पर आज में कोई खुशी का इज़हार नहीं लगता हैं।


इस हाल में अश्क़ों को रोशन करूँ कैसे मैं,

जहाँ ज़िंदगी का कोई आधार नहीं लगता हैं।


ज़िंदगीइक ख़ामोश ग़ज़ल, अधूरी सी,

जिसका हर शेर किसी दर्द का पहरा है।


अब समझ आयाज़िन्दगी उत्सव है, मातम,

बस इक सफ़र है जो ख़ुद में ही अधूरा है।


ज़िन्दगी का सच यहीमुस्कुराना भी इक सबक़ है,

और रोशनी में जीनासबसे गहरा ज़ख़्म है।


हार्दिक समझ गया अब दीवाली का फ़लसफ़ा,

जो जलता है भीतर ही, वही उजियारा है।

हार्दिक जैन ©
 
इंदौर ।। मध्यप्रदेश ।।

 

कठिन शब्दों के अर्थ


1. तसव्वुर - काल्पनिक।

2. साज़ - धुन।

3. फ़लसफ़ा - अनुभव।

 

 

 

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