“वक़्त का सन्नाटा”

इस कविता के माध्यम से, कवि अपनी सोच व्यक्त करते हुए यह कहना चाहता है कि ज़िंदगी का सफ़र हमेशा आसान नहीं होता और वक़्त की छाया में इंसान अक्सर तन्हा, बेहाल और खामोश महसूस करता है, जहाँ हर कदम एक इम्तिहान बन जाता है। यह कविता उन पलों की आवाज़ों की तस्वीर है जब दिल के जज़्बात और उम्मीदें खामोशी में दब जाती हैं, और सवालों का बोझ जवाब से ज्यादा भारी लगता है। यह एक छोटी सी कोशिश है ज़िंदगी की उलझनों और दर्द को अल्फ़ाज़ों के जरिए हल्का करने की।

 

जाना था दूर, मगर मंज़िल कहीं मिलती नहीं,

दिल के अंदर भी अब कोई रौशनी दिखती नहीं।

लगता है जैसे जीने की वजह कहीं खो-सी गई,

ज़िन्दगी का हर एक लम्हा अब सज़ा बन-सी गई।

 

रास्ते ढूँढता हूँ, पर मंज़िल कहीं नज़र आती नहीं,

हर मोड़ पे ख़ामोशी है, कोई परछाई भी कभी दिखती नहीं।

दिल चाहता हैभरोसा कर लूँ किसी फ़रिश्ते पे,

मगर इंसान का चेहरा भी अब रोशनी से चमकता नहीं।

 

दिल के वीरान शहरों में, इक मातम-सा बसा ,

जाना तो है कहीं, पर मंज़िल का निशाँ खो गया।

हर क़दम पूछता है सफ़रमकसद मेरा ?

मगर तक़दीर की क़लम मेरा रास्ता लिखता ही ना।

 

मन सफ़र पर हैमगर है बेहद तन्हा,

जाना तो है कहींपर मंज़िल का सुराग़ मिला।

ढूँढा आसमानों में एक उम्मीद का सितारा,

पर टूटा भरोसा कहेअब किस पे हो यक़ीं भला?

 

ज़माना कहता हैसफ़र में जीत ही सब कुछ है,

पर कौन समझेहर जीत में कितने ज़ख़्म छुपे हैं I

क़दम कभी पीछे हटाए नहीं, फिर भी रास्ता क्यों रूठ गया,

ख़ुद से जंग तो जीत ली मैंने, मगर क़िस्मत से नाता टूट गया।

 

हर क़दम पे लगता हैये ज़िंदगी का इम्तिहान है,

कोई हारना नहीं चाहतामगर जीत भी कहाँ आसान है।

क़ोशिशें तो तो खूब की हैं मैंने, और हौसला भी कम नहीं,

मगर जीत की ख़ुशीअब तक एक दूर खड़ी मेहमान हैं।

 

लम्हों का ये सफ़रकरता है ख़ामोश शिक़ायत,

“Time heals” के लफ़्ज़ भी अब लगते हैं बस एक रिवायत।

निगाहें हो गईं हैं सुस्तहर नज़र में है शिक़ायत,

दूसरों की आँखों में पढ़ना चाहा दर्द अपना,

पर दुनिया के लिए ये भी रह गई बस एक रिवायत।


ख़ुशी सबके चेहरों पे है, मगर मेरी ख़ामोशी से क्यूँ सब अनजान,

क्या दर्द वही कहलाएजो दिखे, जो बने किसी कहानी का निशान?

घड़ी तो चलती रहती है, मगर दिल आगे बढ़ता ही नहीं,

महसूस होती है बस कमीऔर ये सिलसिला कभी थमता ही नहीं।

 

आँखें थक कर रातों से पूछें ये सवाल,

ख़ुशनुमा सपने कहाँ खो गए, कैसा है अब तेरा हाल?

कभी हम भी जीत की दुआ माँगा करते थे चाँद तले,

आज वही चाँद भी लगेरात के ज़ख्मो पर पर्दा डाले I

 

वक़्त, तू ही बताक्या लिखा है मेरे हिस्से में?

तू तो गुज़रता हैपर मेरा दर्द क्यों नहीं ढलता?

वो पल, वो यादें, वो मुस्कुराहट के लम्हे,

अब तो बस एक श्राप हैंजो कभी नहीं टलता।

 

वक़्तएक संगदिल क़ातिल, चलती घड़ियों का क़ैदी,

हर लम्हा गुजरता हैपर दिल का ज़ख़्म क्यों नहीं भरता कभी।

ये बस और गहरा कर देता है उन निशानों को,

जहाँ यादें राख़ बनी जलती हैंमगर बुझती नहीं कभी।

 

और ख़ुशी? — बस औरों के चेहरों तक ही महदूद रह गई,

मेरी ख़ामोशीकिसी के दिल में गूंजकर भी ख़याल बन सकी।

यादगार हैं बस यही हक़ीक़तकि दर्द कभी पुराना नहीं होता,

बस वक़्त के सायें तले, ओर भी गहरा ; और तन्हा होता।

 

और आख़िर में, बस इतना समझ आता है

 

“Grief is not a passing shadow, it lingers.”

 

एक बेक़रार सा साया, जो हर क़दम पर साथ चलता है।

यादों की ख़ुशबू में भी आँसुओं का रंग घुल जाता है,

और ज़िंदगी; एक अधूरी कविता बन जाती है

जो लिखी तो जाती है, मगर कभी पूरी तरह बयां नहीं हो पाती।

 

“So let it be, this grief — an unending melody,

The scars of silence, the fractured poetry.”

 

ज़िंदगी अपनी मुसीबत का क़िस्सा यूँही लिखती रहेगी,

और यादें — खट्टी-मीठी चाँदनी बनकर,

हर रात के दामन पे ख़ामोशी से बिखरती रहेंगी।

 

 

दिल के रास्तों पर, बस खामोशी का ही साया है,

हर यादों में, दर्द का एक गहरा पैमाना छाया है।

 

- By HARDIK JAIN. ©

Indore (MP)

 

 

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