“ग़ज़ल - ए- आदत - ए - ग़म”
इस कविता के द्वारा कवी अपनी सोच को व्यक्त करते हुए ये कहना चाहता है की
ज़िंदगी में दर्द, तन्हाई और मुश्किलें हर किसी के हिस्से में
आती है, लेकिन इंसान को हमेशा मुस्कुराकर और चुपचाप सब कुछ
सहने की आदत पड़ जाती है। हर आघात और हर टूटे हुए ख्वाब के बीच भी चुप रहना और आगे
बढ़ना इंसान की असली ताक़त होती है जो हर तूफान से लड़ना सिखा देती है। यह ग़ज़ल
उस आंतरिक दर्द को बयाँ करती है, जहाँ ज़ख़्मों को आदतों के
पर्दे में छुपा कर इंसान जीवन की हर चुनौती से सामना करता है।
रोने की वजह थी हज़ार,
मगर आदत तो सहने की थी,
दिल टूटा कई बार,
मगर आदत तो चुप रहने की थी।
तन्हाइयों का बोझ हर शब क़दमों से लिपट जाता,
साया भी रूठा,
मगर आदत तो आगे बढ़ने की थी।
दिल के वीराने में जलती रही इक तन्हाई की शमा,
हर दर्द को सह लिया,
क्यूँकि आदत तो चुप रहने की थी।
लबों पे दबी रही चीख़ें, समंदर-सी हलचल थी,
ज़हर जमता रहा दिल में, मगर आदत तो हंसने की थी।
रोना तो चाहा नदियों की तरह, तुफ़ानों की तरह,
पर होठों पे ख़ामोशी थी,
क्यूँकि आदत तो चुप रहने की थी।
हर दोस्ती में मिला धुँआ, हर रिश्ते में आई राख़,
आग में भी जलते रहे,
मगर आदत तो बुझने की थी।
ज़ख़्मों की कसक कहती रही, ‘आवाज़ दो मुझे’,
मगर सब्र का पर्दा था,
क्यूँकि आदत तो चुप रहने की थी।
वक़्त की हवाओं ने ख़्वाबों के महल ढहा डाले,
खण्डहर बने जज़्बात,
मगर आदत तो जीने की थी।
अब वक़्त गुज़र गया है, लम्हें भी बिखर गए सब,
सिहरते हुए सन्नाटों में आदत तो चुप रहने की थी।
अब ख़ामोशी का राज है,
ना शिकवा है ना फ़रियाद,
ग़म का समंदर ठहर गया — मगर आदत तो सहने की थी।
रातें रोने की थी, मगर आदत तो चुप रहने की थी,
हर आँसू बहा था मगर आदत तो छुपाने की थी।
रातों में छुपा आँसू, सुबह ने देखे ना कभी,
परछाईंयाँ मिलीं साज़िश-सी, मगर आदत तो
मुस्कुराने की थी।
शहर के उजालों में खो गई थी कोई आह,
सन्नाटों ने छुआ दिल, मगर आदत तो सुनने की थी।
छलनी हुई यादों में कटते गए दिन, कटते गए साल,
हर धड़कन में दर्द रहा, मगर आदत तो बढ़ने की
थी।
दिल ने चाहा कि फूट पड़े, शोर मचाए आसमान
में,
पर जुबां ने कहा — ‘चुप रहो’, क्यूँकि आदत तो सहने की थी।
हे ‘हार्दिक’! हर याद ने काटा, हर ख्वाब ने झकझोर डाला,
मगर ज़िंदगी ने सिखा दिया — आदत सब कुछ सहने की।
– हार्दिक जैन। ©
इंदौर ।। मध्यप्रदेश
।।
कठिन शब्दों के अर्थ -
1. शब – रात।
2. शमा – दीया।
3. सिहरते – काँपते हुए।
4. छलनी – प्रभावित।
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