“समंदर की गहराई का सफ़र”
इस कविता के द्वारा,
कवि अपनी सोच को व्यक्त करते हुए यह कहना चाहता है कि हमारे अंदर छुपी गहराई को समझना बहुत मुश्किल है। बाहर से सिर्फ़ देखने वालों को दर्द और कहानियों का पता नहीं होता;
उन्हें समंदर की सिर्फ़ लहरों का नज़ारा दिखाई देता है। इसलिए,
अपने अंदर की गहराई को जानने के लिए हमें ख़ुद को खोजना पड़ेगा और समंदर के बीच उतरना पड़ेगा।
कुछ लोग मेरे अल्फ़ाज़ से,
मेरे अंदर देखना चाहते हैं,
मेरी खामोशियों में छुपी,
कहानियाँ समझना चाहते हैं।
किनारे पर बैठ कर, लहरों को गिन रहे हैं,
समंदर की गहराई, बस नज़रों से तौल रहे हैं।
कैसे समझाऊँ उन्हें,
जो सिर्फ़ ऊपर से देखते हैं,
मेरे दिल के तूफ़ान को, जो सिर्फ़ अंदर ही बहते हैं।
ये गहराई समंदर की, आँसुओं से बंधी है,
जैसे दर्द की लहरों में, हर रात ढलती है।
छुपाया है मैंने बहुत कुछ,
ख़ुद से भी कभी,
हर एक लहर के पीछे, एक कहानी है दबी।
जो दर्द में लिखी थी, वो ख़ुद ही मिट गई,
और जो यादों में बसी, वो लहरों के संग बह गई।
समंदर से रिश्ता मेरा,
अक्सर लोग समझ नहीं पाते,
जो देखते हैं बस फ़ासले, उनकी गहराई को नहीं जानते।
लेकिन गहराइयों का हिसाब लगाना कभी नहीं लगता आसान,
जो ढूँढते हैं किनारा, वो खो देते हैं अपने अरमान।
क्या फ़ायदा उनसे कहने का,
जो सिर्फ़ मुस्कान देखते हैं,
दिल के राज़ जो ख़ुद अपनी आँखों से सींचते हैं।
मेरी ख़ामोशी के पीछे का तूफ़ान, सिर्फ़ मुझे पता है,
रातों में गिरे आँसुओं का रंग, सिर्फ़ समंदर ही समझता है।
कभी लहरों को गिनता,
कभी ख़ुद को खो देता हूँ,
किनारे से दूर होकर, अपने आप से भी दूर हो जाता हूँ।
ये सिलसिला कब ख़त्म होगा, कब ख़त्म होगी ये तलाश,
समंदर के बीच मिलता है, सिर्फ़ ख़ुद के होने का एहसास।
जो लोग समंदर को दूर से देख,
ख़ुश हो जाते हैं,
वो कैसे समझे कि गहराई में दर्द छुप जाता है।
उनकी आँखों में है बस लहरों का एक नज़ारा,
मेरी आँखों में हर लहर है, एक बिखरा हुआ अफ़साना।
जिसे खोजना है,
उसको बीच में उतरना पड़ेगा,
डूबने का डर हो, तो भी किनारा छोड़ना पड़ेगा।
लहरों के साथ चलना है, तो सब कुछ खोना पड़ेगा,
अपनी छवि को भी तोड़कर, दर्द की गहराई में जाना पड़ेगा।
यह सफ़र है तन्हाई का,
जहाँ मुस्कान की जगह नहीं,
समंदर की गहराई में रोशनी का कोई निशान नहीं।
जो लोग यह समंदर को सिर्फ़ अपने हौसलों से नापते हैं,
वो कभी-कभी अपनी दर्द भरी कहानियाँ छापते हैं।
मैं बस एक मिसाल हूँ,
जो किनारे पर खड़ा हूँ,
मेरे अंदर के दर्द को, ख़ुद से भी छुपा रहा हूँ।
मगर समंदर की गहराई में छुपा है मेरा असल चेहरा,
जो चाहे समझना, तो लहरों के साथ ख़ुद को खोना पड़ेगा गहरा।
तो जो लोग मेरे अल्फ़ाज़ से,
मेरे अंदर देखना चाहते हैं,
नादान हैं वो लोग, जो किनारे पर बैठकर, समंदर देखना चाहते हैं।
समंदर के बीच जो गए, वही सच के क़रीब आए,
वरना फ़ासलों से बस लहरों के खेल समझ आए।
“समंदर की गहराई को समझना है तो डूबना तो पड़ेगा,
किनारे पर बैठ कर ख़ुद को खोजना तो पड़ेगा।”
– हार्दिक जैन. ©
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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